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Jeevan Rekha

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हाथ में सात प्रधान रेखायें होती हैं जिससे हम अपने जीवन के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को समझ सकते हैं और समझ सकते हैं कि ये रेखाये कितनी शुभ या अशुभ हैं।

जीवन रेखा- Line of life  यह रेखा शुक्र क्षेत्र को घेरे हुए होती हैं जिसे जीवन, साथ और उम्र के लिए देखा जाता हैं। इन्हें जीवन रेखा/आयु या जीवनी शक्ति रेखा भी कहते हैं।

जीवन रेखा

हस्तरेखा विज्ञान में हाथों में बहुत सी मुख्य और दूसरी रेखाये होती हैं, जिससे हाथों की इन रेखाओ और अन्य पर्वत व चिन्हों द्वारा ही जातक के बारे में कुछ कहा जाता हैं। जिनमें एक रेखा आयुरेखा/जीवन रेखा हैं। ये रेखा हथेली के दाहिनी ओर से निकलकर गुरुक्षेत्र के नीचे गोलाई लिए हुए अंगुठे वाले भाग को घेरती हुई नीचे मणिबंध की ओर चली जाती हैं। जिसमे मंगल और शुक्र का क्षेत्र भी घिरा हुए रहता हैं। बहुत बार यह रेखा मणिबंध की ओर न जाकर शुक्र क्षेत्र के ही नीचे की ओर घूम जाती हैं। हाथ की जीवन रेखा से मनुष्य के स्वास्थ्य तथा शारीरिक शक्ति का पता चलता हैं की उसकी प्राण शक्ति कैसी रहेगी और कब उसकी शक्तियां वृद्धि को प्रताप होगी और वह जीवन में कैसे सफलता प्राप्त कर सकेगा और कब प्राण शक्ति के ह्रास होगा के कारण उसे असफलता मिलेगी।

जीवन रेखा की क्षीणता या अभाव-  

प्राय: यह रेखा सभी हाथो में होती हैं लेकिन जिन व्यक्तियों के हाथ में यह साधारण दिखाई न दे तब भी घ्यान से देखने पर यह क्षीण रूप में दिखाई देगी लेकिन ऐसे व्यक्तियो में प्राण शक्ति का अभाव होगा अर्थात उनका स्वास्थ्य यदि अच्छा भी दिखाई दे तो भी वे दीर्घायु होंगे यह निश्चचय रुप से नहीं कहा जा सकता हैं। यह अवश्य हैं की जिनका अंगूठा बड़ा होता हैं और मस्तिष्क रेखा अच्छी होती हैं तो वह जीवन रेखा के क्षीण होने पर भी दीर्घायु हो सकते हैं। कई हाथो में ऐसा होता हैं, की जीवनरेखा तो आधी ही दूर तक जाती हैं और भाग्य रेखा के साथ मिल कर गोलाई लिए हुए आगे जाकर मस्तिष्क रेखा में मिल जाती हैं। ऐसी स्थिति में निश्चय करना चाहिए की जीवन रेखा कौनसी हैं। कई बार जीवन रेखा छोटी और क्षीण होती हैं और सहायक रेखा बड़ी और गहरी होती हैं। ऐसे हाथो में पहचान का सहज उपाय यह हैं, की सहायक रेखा शुक्र क्षेत्र के ऊपर होती हैं और जीवनरेखा शुक्रक्षेत्र को घेरती हुई।

जीवन रेखा का प्रारम्भ- प्राय: हाथ के दाहिनी भाग से ही जीवन रेखा प्रारम्भ होती हैं यह इसकी स्वाभाविक स्थिति हैं परन्तु यदि यह बृहस्पति के क्षेत्र से प्रारम्भ हो तो यह समझना चाहिए की वह व्यक्ति बहुत महत्वकांक्षी हैं और धन, यश और मान की इच्छा होती हैं। हाथ में गुरु, शनि, सूर्य, बुध, शुक्र और चंद्रादि क्षेत्र विशेषरुप से उन्नंत होते हैं और उसी के अनुसार जातक की महत्वकांक्षा होती हैं। जैसे बुध का प्रभाव हो तो जातक वक्ता, विद्वान और व्यापार प्रसिद्धि चाहेगा। यदि सूर्य का स्थान और अनामिका प्रमुख हैं तो धन और कला संबंधी उसकी आकांक्षायें होगी। ऐसे ही गुरु का प्रभाव अधिक हो तो पद-मान की अभिलाषा अधिक रहती हैं। जीवन रेखा शूक्रक्षेत्र को चाप की तरह घेरे रहती हैं किन्तु बहुत हाथो में तो यह घेरा बड़ा होता हैं अर्थात शूक्रक्षेत्र बड़ा और विस्तृत होता हैं, किन्तु कुछ हाथो में जीवनरेखा की गोलाई कम रहती हैं, जब कारण शुक्रक्षेत्र छोटा सीमित और संकुचित हो जाता हैं। जितनी गोलाई अघिक होगी उतना ही शुक्रक्षेत्र का विस्तार अधिक होगा जितनी गोलाई कम होगी उतना ही शुक्र क्षेत्र छोटा हो जायगा।

शुक्र क्षेत्र से आकर्षण, अनुराग स्त्री-पुरुष का पारस्परिक प्रेम, इच्छा और कामुकता आदि का विचार शुक्रक्षेत्र से किया जाता हैं। इस कारण जिनका शुक्रक्षेत्र सीमित और संकुचित होगा उनके ह्दय में प्रेम, आकर्षण स्त्री का पुरुष के प्रति झुकाव कम होगा। ऐसे व्यक्तियों में जब अनुराग की भावना में ही कमी हैं तो संतान उत्पादन-शक्ति भी कम ही होगी और इस कारण विवाह होने पर भी उतनी अधिक संतान नहीं होती जितना उनका शूक्रक्षेत्र पुष्ट और विस्तृत हैं। इस कारण जीवन रेखा कितना भाग घेरती हैं वह संतति के दृष्टिकोण से भी महत्व का हैं। सामान्य नियम यह हैं की जीवनरेखा ही बड़ी होगी उतनी ही मनुष्य की आयु अधिक होगी।

बहुत बार तो यह देखा की मृत व्यक्तियों की जीवनरेखा से जितनी आयु प्रतीत होती थी उतनी आयु पूर्ण होने पर उनका शरीरांत हुआ किन्तु कई बार यह ही देखा की जिस अवस्था में उस व्यक्ति की मृत्यु हुई उसके बहुत बाद तक की अवस्था जीवनरेखा से प्रकट होती थी अर्थात जीवनरेखा सुस्पष्ट और लम्बी थी। ऐसी सिथति में यह शंका उठती हैं की जब जीवन रेखाओ से उन व्यक्तियों की मृत्यु नहीं प्रकट होती तो उनकी मृत्यु पहले ही कैसे गई। इसका उत्तर यही हैं की जीवन रेखा से ही आयु के अंतिम निर्णय पर नहीं पहुंचना चाहिए क्योंकि जीवनरेखा स्वाभाविक प्राणशक्ति प्रकट करती हैं। ह्रदय रेखा, मस्तिष्क रेखा, स्वास्थ्य रेखा तथा अन्य रेखाओं व चिन्हों से भी यह देखना चाहिए की बीमारी या मृत्यु के चिन्ह क्या हैं। इसी कारण हस्तपरीक्षकों को सावधान किया जाता हैं कि किसी एक रेखा या चिन्ह से ही शीघ्रता में परिणाम निकलने की चेष्टा न करे।

यदि ये रेखा दाहिने और बाये हाथ में भिन्न-भिन्न प्रकार की हो अर्थात एक में बड़ी और एक में छोटी हो तो अलग से ही फलो को समझाना चाहिए।

यदि दाहिने हाथ में रेखा बड़ी हो तो समझिये की पैदा होने के समय वह व्यक्ति उतनी प्राणशक्ति लेकर उत्पन्न नहीं हुआ था किन्तु बाद में आहार, विहार, विचार और संयम द्वारा इसकी प्राणशक्ति बढी हैं और इसकी आयु लम्बी हो गई।   अपने करीयर के बारे में जानने के लिए यहां क्लिक करें।   

यदि बायें हाथ में रेखा बड़ी हो तो वह समझना चाहिए की माता के गर्भ से तो यह पर्याप्त प्राणशक्ति लेकर आया था किन्तु बाद में उपर्युक्त विविध कारणों से वह शक्ति कम हो गई।

जहां भी जीवन रेखा सुस्पष्ट, गम्भीर और अटूट हो यह समझना चाहिए की जीवन और स्वास्थ्य को कायम रखने के लिए काफी प्राणशक्ति हैं और इसके विपरीत जहां जीवनरेखा छोटी हो समझाना चाहिए की उतनी आयु पूर्ण होने पर जीवन को भय हैं।  अपने जन्म दिन पर अपने आने वाले समय के बारे में जानने के लिए क्लिक करें।

रेखा का अन्य लक्षण- यदि यह रेखा गहरी और सुस्पष्ट हो तो समझिये की प्राणशक्ति का प्रवाह उत्तम हैं जिससे ऐसा व्यक्ति बलशाली और स्वस्थ होगा और बीमारी का ड़र कम हैं तो पुष्ट व्यक्तियों के हाथ में रेखा स्पष्ट और गहरी होती हैं ऐसे व्यक्ति चिंता कम करते हैं और उनका स्वास्थ्य अच्छा रहता हैं।

यदि जीवनरेखा गहरी न हो और आवश्यकता से अधिक चौडी या श्रृंखलाकार होतो और मांसल और लचकदार हाथ होने पर भी ऐसे व्यक्तियो में उतनी शक्ति नहीं होगी जितनी गंभीर रेखा वालों में होती हैं। बहुत हाथों में देखने में आया हैं, कि प्रारम्भ में तो रेखा सुंदर अर्थात गहरी और सुस्पष्ट हैं। किन्तु बाद में तो पतली होती गई हैं हैं इसका अर्थ हैं, की जीवन के पूर्वाभाग में तो उनमें काफी प्राणशक्ति संचित थी किन्तु जीवन के उत्तर भाग में जहां से जीवनरेखा सुक्ष्म होती गई तभी इस प्राणशक्ति का ह्रास होता गया।

जीवन रेखा- हस्तरेखा विज्ञान में हथेली में स्पष्ट, पुष्ट, गम्भीर और दीर्घ जीवन रेखा बल, शक्ति और शुभ स्वास्थ्य प्रद्र्शित करती हैं, लेकिन हाथो के दूसरे चिन्ह या भावो से जो गुण-अवगुण प्रकट होते हैं इनके संयोग से भी परिणाम में बदलाव आते हैं।  अन्य लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें। 

जैसे‌-किसी के हाथ में जीवन रेखा बहुत गहरी हो और बृहस्पति पर्वत मज़बूत हो अर्थात गुरु का क्षेत्र उन्नत, विस्तृत हो और तर्जनी अधिक लम्बी हो तथा उसकी उंगलियों के तृतीय पोर अन्य पोरों की अपेक्षा पुष्ट हो तो ऐसा व्यक्ति जीवन रेखा के प्रदान किए हुए बल और शक्ति का दुरूपयोग करता हैं और अत्यधिक भोज़न, मदिरापान द्वारा सदैव अपनी तृप्ति करता रहता हैं। यदि ऐसे हाथ व हथेली में अधिक लाल वर्ण भी दिखाई दे तो उसके जीवन में अति भोजन और अति मदिरापान अपना काफी प्रभाव जमा चुके होते हैं।     Vedic astrology course

ऐसे हाथो में जीवन रेखा के गहरी, गंभीर और दृश्य रहने पर भी वह भय बना रहता हैं की यदपि शरीर और शक्ति में कमी नहीं हैं किन्तु अधिक भोजन और मदिरापान के असंयम फलस्वरूप सदैव स्वस्थ रहने वाला भी व्यक्ति रक्तचाप, मूर्छा आदि का शिकार हो जाता हैं। इन रोगो के कारण सहसा चक्कर आ जाना, बेहोशी या पक्षाघात आदि संघातिक रोग हो जाते हैं।

किसी के हाथ में उन्नत सूर्यक्षेत्र, सूर्य रेखा और लम्बी अनामिका वाले व्यक्ति प्राणशक्ति का सदुपयोग करते हैं और दीर्षायु होते हैं।  Take Appointment 

जिस हाथ में मंगल पर्वत का प्रभाव अधिक हो अर्थात मंगल के क्षेत्र उन्नत और विस्तृत हो उनकी भी वही प्रवृति होती हैं जैसी गुरु के प्रभाव वाले व्यक्तियों की ऊपर वर्णित की जा चुकी हैं।

जिनका शुक्रक्षेत्र उच्च और विस्तृत हैं पर जिनके अन्य लक्षण भी शुक्र का विशेष प्रभाव प्रकट करते हैं ऐसे व्यक्ति भी अधिक भोग विलास द्वारा प्राणशक्ति का दुरूपयोग करते हैं और परिणाम ह्रास ही होता हैं।

हाथ में चंद्र, बुध या शनि का प्रभाव जिन पर विशेष होता हैं उनकी जीवन की वृतियां अपेक्षाकृत संयमित होती हैं।   Why Worried? Ask a question and get solutions! 

पतली और हल्की जीवनरेखा

यदि जीवनरेखा बहुत पतली, हल्की हो तो समझना चाहिए कि प्राणशक्ति की कमी हैं ऐसे व्यक्ति की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर होती हैं और जातक जल्दी बीमार हो जाते हैं जिससे वह ज्यादा शारीरिक कष्ट या परिश्रम भी सहन नहीं कर सकते। जीवनरेखा किस हद तक पतली और हल्की हैं यह निश्चयय करने के लिए हाथ की और भी रेखाये भी देखनी चाहिए और फिर तुलनात्मक दृष्टि से निर्णय करना उचित हैं यदि अन्य रेखाओ की अपेक्षा जीवन रेखा गहरी हैं तो ऐसा व्यक्ति चिंता कम करेगा यदि और अन्य रेखाओं की अपेक्षा जीवन रेखा कमज़ोर हैं तो ऐसा व्यक्ति सदैव यह अनुभव करेगा की वह बहुत परिश्रम कर रहा हैं लेकिन उस पर बड़ा ज़ोर पड़ रहा हैं और उसके स्वास्थ्य बिगड़ने का ड़र रहता हैं रेखा पर जहां भी कोई गड्डा, टूटी हुई या अन्य कोई चिन्ह हो तो बीमारी अवश्य होती हैं। हाथ में जीवन रेखा बहुत पतली या उथली हो तो जातक सदैव चिंतित से रहते हैं उन्हें भविष्य की चिंता और विपत्तियों से घिरा हुआ प्रतीत होता हैं इसलिए जहां कष्ट, परिश्रम, आशंका या साहस का कार्य हो वह ऐसे व्यक्तियों को जीवन भर संघर्ष करना सीखना चाहिए।

यदि जीवन रेखा बाये हाथ में टूटी हो और दहिये हाथ में सम्पूर्ण हो अर्थात बिना इस दोष के हो तो यह किसी गम्भीर बीमारी की सूचक होती हैं यदि दोनों हाथो में टूटी हुई हो तो प्राय: मृत्यु की सूचक होती हैं। यदि एक टुटा हुआ भाग शुक्र क्षेत्र के अंदर की ओर मुड़ जाए तो मृत्यु होना निश्चित हैं। यदि जीवन रेखा हाथ के अन्दर की ओर के बजाय बृहस्पति क्षेत्र के मूल स्थान से प्रारम्भ हो तो यह समझना चाहिए कि जातक आरम्भ से ही महत्वकांशी हैं।

यदि जीवन रेखा अपनी प्रारम्भिक अवस्था में श्रृंखलाकार हो तो वह जीवन के प्रारम्भिक भाग में अस्वस्थता की सूचक होती हैं। जब जीवन रेखा घनिष्ठता से मस्तिष्क रेखा से जुडी हो तो जीवन का मार्गदर्शन युक्ति-संगतता और बुद्धिमानी से होता हैं, परन्तु जातक उन सब बातों में और कामो में सतर्कता वरतता  हैं जिसका संबंघ उसके अपने से होता हैं। जब जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा के बीच में फासला मध्यम हो तो जातक अपनी योजनाओ और विचारो को कार्यांवित करने में अधिक स्वतंत्र होता हैं ऐसी स्थिति जातक को स्फूर्तिवान और जीवन वाला बनाती हैं। परन्तु यदि यह फासला बहुत थोड़ा हो तो जातक को बहुत अधिक आत्मविश्वास होता हैं और वह दुःसाहसी, आवेशात्मक, जल्दबाज़ बन जाता हैं और युक्ति संगतता उसके लिए कोई अर्थ नहीं रखती।

जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा और ह्दय रेखा का एक साथ जुड़ा होना हाथ में अत्यंत दुर्भाग्यसूचक चिन्ह हैं। वह इस बात की सूचना देता हैं कि अपनी बुद्धिहीनता से या आवेश में आकर जातक अपने आपको संकट और महाविपत्ति में ड़ाल लेगा। यह चिन्ह इस बात का भी धोतक हैं की जातक को अपने ऊपर आने वाले संकटो का बिलकुल आभास नहीं हैं। जब जीवन रेखा अपने मघ्य में विभाजित हो जाता हैं और और शाखा चंद्र क्षेत्र के मूल स्थान को जाती हैं तो एक अच्छी बनावट के दृढ़ हाथ का जातक अस्थिर और अधीर होता हैं। वह एक स्थान में टिककर नहीं बैठ सकता। वह यात्राएं करके ही उसे चैन पाता हैं। यदि इस प्रकार का योग पिलपिले मुलायम हाथ में हो जिसमें झुकी हुई शीर्ष रेखा हो, तो भी जातक अस्थिर और अधीर होता हैं और वह उत्तेजनापूर्ण अवसरों के लिए लालयित रहता हैं, परन्तु इस प्रकार की उत्तेजना मदपान आदि से शांत होती हैं।

यदि बाल की तरह सुक्ष्म रेखाये जीवन रेखा से नीचे की और गिरती हो या उससे जुडी हो, तो जिस आयु में वे दिखाई दे उस आयु में जीवन शक्ति में कमी होती हैं अधिकार ऐसी रेखाये जीवन रेखा के अंत में दिखाई देती हैं और तब वे जातक की जीवन शक्ति के विघटन की सूचक होती हैं। जो रेखाये जीवन रेखा से निकलकर ऊपर की ओर जाती हैं वे जातक के आर्थिक लाभ और सफलता की धोतक होती हैं।

यदि ऐसी कोई रेखा बृहस्पति क्षेत्र को चली जाये तो जिस आयु पर ऐसा योग बने उसमें जातक को पद में या अपने व्यवसाय में उन्नति प्राप्त होती हैं। ऐसा योग जातक की महत्वकांक्षाओं को पूर्ण करने वाला होता हैं। यदि ऐसी रेखा श्नै क्षेत्र की ओर चली जाये और भाग्य रेखा के बराबर चलने लगे तो जातक को धन-लाभ होता हैं और उसकी सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति होती हैं। परंतु ऐसा फल जातक के परिश्रम और दृढ़ निश्चय द्वारा ही प्राप्त होता हैं।

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